Ladki ek boj ya lakshmi - 1 in Hindi Short Stories by Adroja Mital books and stories PDF | लड़की एक बोझ या लक्ष्मी भाग-1

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लड़की एक बोझ या लक्ष्मी भाग-1

एस सदी में कुछ लोग लड़की को एक बोज मानते हैं तो कुछ लोग घरकि लक्षमी मानते हैं| ये कहानी हैं, दो लड़कियों कि, जो दोनो दोस्त थि। जिंनके परिवार ऊँचे घराने ओर निचे घराने कि अलग अलग सोच ओर संस्कार जिनके लिये लड़कियों का जिवन अलग-अलग हो गय था|

प्रस्तावना

दो अलग-अलग परिवार कि है ये कहानी। एक अमिर हैं तो एक ग़रीब है। लेकिन उन दोनों कि सोच बहोत अलग-अलग हैं।

ये कहानी में दो लडकियां थी। जिंनका नाम अमिर परिवार कि लड़की क नाम "परि" था ओर गरिब परिवार कि लड़की का नाम "माहिं" था। दोनों 10वीं कक्षा में पढ़ते थें। दोनो एक दूसरे की बहोत अछी सहेलियां थि। ओर पढ़ने में माहिं परि से ज्यादा हुसियार थीं। परंतु दोनों परिवार कि सोच अलग अलग थीं। परि समजदार थि माहिं गरिब होने कि वजह से परि के घऱ खेलने नहि जति थि। लेकिन परि को ए बात पसंद नहि थि कि माहिं उसके घऱ खेलने नहि जति थि। परि माहिं कों हार दीं कहेति थि मेरे घर चलो बाद में तुम्हें तुम्हारे घर मेरे पापा ओर में छोड़ जायेंगे। माहिं हर बार मना कर देति थि। या तो कुछ ना कुछ बहना कर देति थि। ऒर उस बात को टाल देति थि। लेकिन माहिं को घर जा के घरके सारे काम करने होते थें, ओर उसके पापा को पसंद नहीं था कि वो परि कि सहेलि थि। उस्के पापा ऐसा मानते थे कि अमिर लोगो कि ओलाद बिगड़ी हुयीं होति हैं। ओर हम वैसे भि ग़रीब हैं हम उस्कि बरबरि नहि कर सकते। तो तुम परि से दुर हि रेहना।

माहिं ए बात परि को केसे बताती क्यूँकि वो दोनों बहोत अछि सहेलियां थि। वो पुरा दिन एक दूसरे के साथ रहेति थि। माहिं को ऐसा लगता था कि वो बात परि को बतायेगि तो उसको बहोत बुरा लगेगा। लेकिन परि को इतना तो पता था कि माहिं ग़रीब हैं। उसकी वजह से मेरे घऱ पे आती नहि थि। परि के घऱ में उस्को बेटे कि तरह रखा जाता था। दूसरी तरफ माहि अपने मा बाप कि दूसरी बेटी थि। परि एक लोति बेटी थि उसके मा-बाप कि। ओर माहि के मा-बाप को दो बेटियां ओर एक बेटा था।

एक दिन कक्षा में सभि लड़के ओर लडकियां घूमने जाने का प्लान बना रहे थे। परि ने माहिं को बोला चलो हम भि चक्ते हैं। परि ने तो उसका ओर माहिं का नाम लिखा दीया। माहिं को पता था कि उस्के पापा उस्को कभि जाने नहीं देंगे। इस्लिये माहिं गुस्से में बोल्के चलि गयी तुम्हें जाना तो जाव में नहीं आवुंगि ओर ऐसा बोल्के वो गुस्से में घर चलि गयी। परि को कुछ समज हि नहीं आया माहिं को हुवा क्या और वो एसे क्यू चलि गयि। मेरि कोई बात का बुरा लगा होगा। उस्को मजा नहीं होगी इसलिये चली गयी। परि को कुछ समज हि नहि आ रहा थ। क्युकि माहि ने पहलि बार ऐसा बर्ताव किया था।

माहि घर जा के काम करने लगी। उसे बहोत बुरा लग रहा था क्युकि उसने परि के साथ ऐसा बर्ताव किया। लेकिन वो करति भि तो क्या करति उस्के पापा मानने वाले नहीं थे। माहिं ने बहोत सोचा ओर उस्ने अप्ने मन को मनाके ए ठान लिया कि वो परि को कल सब कुछ सच बता देंगी। उस्को मे जूठ नहीं केह सकती !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

महीं परि को सच बता सकती है या नहीं। ओर माहिं ने सच बताया परि को तो परि उस्के लिये क्या कर सकती है। वो हम देखते हैं भाग-2 में.................................